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पगार सरकार से, काम ठेकेदारों के लिए !
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> आबकारी विभाग के अधिकारी ठेकेदारों के आगे नतमस्तक
> राजस्व मे लगा करोड़ों का चूना...
हरीश गुप्ता
जयपुर। कोरोना महामारी से लड़ने में जहां राज्य सरकार को सबसे बड़ी चिंता है तो राज्य के खजाने की, वहीं राज्य के आबकारी विभाग की गलती से राजस्व को करोड़ों का चूना लग गया। ऐसे में यक्ष प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि आखिर विभाग के अधिकारी ठेकेदारों के लिए काम करते हैं? जबकि महीने की पगार सरकारी खजाने से उठा रहे हैं।
प्रत्येक वर्ष जब नई ठेके उठते हैं तो आखरी दिन तक मौजूदा ठेकेदार अपना स्टॉक क्लियर करने में जुट जाता है, उसके कारण वह माल कुछ छूट में भी बेच देता है। इस बार ऐसा इसलिए नहीं हो पाया कि ठेका खत्म होने में करीब 10 दिन शेष बचे थे। किसी को ऐसा अंदेशा भी नहीं था और सरकार ने रात को ठेके बंद होने के बाद लाॅक डाउन की घोषणा कर डाली।
नतीजन शुरू में तो ठेकेदार कुछ दिनों तक कुछ समझ नहीं पाए। कुछ समझ आया तब सेटिंग कर 'चोर' गेट से माल निकालना शुरू कर दिया। इस बीच ठेका अवधि समाप्त हो गई। उसके बावजूद आबकारी विभाग के निरीक्षकों ने सरकारी खजाने की चिंता नहीं की। उन्हें चिंता थी तो हर ठेके से मिलने वाले हर माह के 'आशीर्वाद' की। दुकानों पर सील भी काफी दिनों बाद लगाई गई।
सूत्रों ने बताया कि नए लाइसेंसी धारकों को पुरानी दुकानों से बचा माल हैंड ओवर करवाना था, जो आज तक नहीं हुआ। यहां यह महत्वपूर्ण है कि माल नए लाइसेंसी धारक को सम्भलाया जाता है तब इसके बदले ₹5 प्रति लीटर अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है जो सरकारी खजाने में जमा होता है।
सूत्रों ने बताया कि बीते वर्ष इस शुल्क के रूप में अकेले जयपुर से 1 करोड़ रुपए सरकारी खजाने में आए थे। इस बार ऐसा अभी तक नहीं किया गया। जबकि इस बार 5 से ₹10 करोड़ आते क्योंकि दुकानों में माल ठसाठस भरा हुआ था।
सूत्रों की माने तो यूं तो इस प्रक्रिया में काफी देर हो चुकी और काफी दुकानों से माल पार हो चुका है, इसलिए इस बार राजस्व में पिछली बार की बराबरी भी ना हो सके।
विभाग में चर्चाएं जोरों पर हैं,"गलती तो हुई है, लेकिन अब करें भी तो आखिर क्या?" सवाल उठता है विभाग के कारिंदे काम किसके लिए कर रहे हैं? सरकार के लिए या शराब व्यवसायियों के फायदे के लिए?
जानकारी के मुताबिक रविवार को लालकोठी इलाके में शराब की दुकान के ताले टूटने का समाचार सामने आया है। 'अमृत इंडिया' ने तो ताले टूटने आदि की संभावनाएं पहले से ही जता दी थी, लेकिन अधिकारियों के कोई फर्क नहीं पड़ा।
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