बड़ी कंपनियों के दबाव में निकलते आदेश ! कहीं कठपुतली तो नहीं बने बड़े अधिकारी
> शराब की बड़ी कंपनियों की विभाग में है उच्च स्तर पर सैटिंग...
हरीश गुप्ता
जयपुर। आबकारी विभाग में उच्च स्तर पर आदेश निकालने के कुछ लोगों को बड़ा शौक है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह आदेश शराब की बड़ी कंपनियों के दबाव में निकालते हो? वरना लाॅक डाउन जैसे हालात में दुकानों पर शराब सप्लाई के आदेश जारी नहीं होते।
विभाग ही नहीं सचिवालय के गलियारों में भी चर्चाएं जोरों पर है, "आबकारी विभाग से जुड़े कुछ बड़े अधिकारी शराब की बड़ी कंपनियों की कठपुतली बने हुए हैं।" एक तरफ गहलोत सरकार लाॅक डाउन सफल बनाने और राज्य की आवाम घरों से ना निकले इस बारे में चिंतित है, वहीं आबकारी विभाग उसके विपरीत काम कर रहा है।
अभी तक शराब सप्लाई के दो लिखित आदेश आए हैं जिनमें 14 और 22 अप्रैल के। यू मौखिक आदेशों की बात ही अलग है। बड़े स्तर पर आदेश आते हैं तो उनके अधीनस्थों की पालना की मजबूरी हो जाती है।
सूत्रों की मानें तो प्रथम आदेश में हवाला दिया हुआ था कि गोदाम फुल है हाईवे पर शराब से भरे ट्रक खड़े हैं ऐसे में चोरी आदि का भय बना हुआ है। इसलिए नए लाइसेंसियों को माल की सप्लाई शुरू कर दी जाए, लेकिन बिक्री पर पूर्णतया पाबंदी रहेगी।
मामले मेंं पहले ही चेता दिया था कि माल की सप्लाई शुरू की गई तो बड़ी गड़बड़ी हो सकती है। सूत्रों ने बताया कि बड़ी कंपनियों के लगातार बढ़ रहे दबाव के चलते सभी मौन हो गए। उसका एक कारण यह भी था कि कंपनियों का ट्रक भाड़ा रोजना का लग रहा था।
यूं तो माल खरीदने से लेकर रेट तय करने के संबंध में तीन जनों की कमेटी होती है जिसमें आबकारी वित्त और आरएसबीसीएल की मौजूदगी होती है। कमेटी ही कंपनियों के बारे में तय करती है कि उक्त कंपनी का माल लिया जाएगा या नहीं। यही कारण है कि कोई जरूरी नहीं कि सभी ब्रांड व सभी कंपनियों की शराब यहां बिके। हो सकता है किसी अन्य राज्य में बिक रही किसी कंपनी की शराब यहां ना मिले ऐसे ही यहां बिक रही शराब दूसरे राज्य में ना मिले।
अपने ब्रांड की रेट्स के लिए भी हर कंपनी को बड़ा दिमाग लगाना होता है। कहीं 'व्यवस्था' करनी है, वह भी की जाती है। वैसे भी कहा गया है, "हरे रंग के कागज में बड़ी ताकत होती है।"
गोदाम भरे थे तो आर्डर क्यों?
हाईवे पर अपने खाली होने की बारी का इंतजार कर रहे ट्रकों के बारे में चर्चाएं हैं, "जब गोदाम भरे पड़े थे तो नया ऑर्डर दिया ही क्यों?" क्या मदिरा निर्माता कंपनियों का दबाव था? लाॅक डाउन की चिंता नहीं थी किसी को भी? खुद आदेश बता रहे हैं कि गोदामों में माल रखने की जगह नहीं है फिर नए खरीद के आदेश क्यों दे डाले। क्या शराब कंपनी नीति निर्धारित करेंगी? चर्चा यह भी है कि, "कुछ लोगों की बड़ी कंपनियों से कोई बड़ी डील तो नहीं हुई?"
बीयर का खेल तो नहीं-
सूत्रों ने बताया कि हाईवे पर खड़े ट्रकों में करीब 100 करोड़ मूल्य की बीयर भरी हुई थी। उधर शराब सप्लाई कंपनियों को चिंता इस बात की थी की माल के सप्लाई नहीं होने से बियर एक्सपायरी डेट की ना हो जाए। कंपनियों ने सचिवालय में बैठने वाले एक अधिकारी पर दबाव बनाया और माल खाली करवाने का प्रेशर डाला। सूत्रों ने बताया कि कंपनियों को ट्रक भाड़े से ज्यादा चिंता बीयर के एक्सपायरी डेट होने की थी।
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