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स्वर्गीय श्रीमती सुप्यार कंवर की 35वीं पुण्यतिथि पर आमरस एवं भजनामृत गंगा कार्यक्रम का हुआ भव्य आयोजन

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जयपुर। स्वर्गीय श्रीमती सुप्यार कंवर की 35वीं पुण्यतिथि पर सुप्यार देवी तंवर फाउंडेशन के तत्वावधान में रविवार, 19 मई, 2024 को कांवटिया सर्कल पर भावपूर्ण भजन संध्या का आयोजन के साथ आमरस प्रसादी का वितरण किया गया।  कार्यक्रम में प्रतिभाशाली कलाकारों की आकाशीय आवाजें शांत वातावरण में गुंजायमान हो उठीं, जो उपस्थित लोगों के दिलों और आत्मा को छू गईं। इस अवसर पर स्थानीय जनप्रतिनिधि, आईएएस राजेंद्र विजय, एडिशनल एसपी पूनमचंद विश्नोई, सुरेंद्र सिंह शेखावत, अनिल शर्मा, के.के. अवस्थी, अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण सहित सुप्यार देवी तंवर फाउंडेशन के अध्यक्ष राधेश्याम तंवर, उपाध्यक्ष श्रीमती मीना कंवर, मंत्री मेघना तंवर, कोषाध्यक्ष अजय सिंह तंवर एवं गणमान्य अतिथिगण उपस्थित रहे।

शोधकर्त्ताओं ने उजागर किया तथ्य, जंगलों के नए राजा अपना इलाका ढूंढने कर रहे रेगिस्तान का रूख

कई नर पेंथर पिछले एक दशक में थार की ओर बढ़े...  



उदयपुर। हमारे जंगलों के राजा पेंथर अब अपना नया इलाका खोजने की दृष्टि से    उन स्थानों की ओर रूख करने लगे हैं जहां पर पहले कभी इनकी उपस्थिति नहीं थी। यह तथ्य हाल ही में उदयपुर व जोधपुर के शोधकर्त्ताओं ने अपने शोधपत्र में उजागर किया है।


देश के ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक व उदयपुर के सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक डॉ. सतीश शर्मा, जोधपुर के माचिया बायोलोजिक पार्क के चिकित्साधिकारी डॉ. श्रवण सिंह राठौड़ और मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व पर्यावरण विज्ञानी डॉ. विजय कोली ने द नेशनल एकेडमी ऑफ साईंसेंस, इण्डिया में प्रकाशित अपने शोधपत्र में बताया है कि आमतौर पर सदाबहार जंगलों और रिहायशी इलाकों के समीप रहने वाले पेंथर (तंेदुएं) पिछले एक दशक से थार मरूस्थल की ओर रूख करने लगे हैं जबकि इन क्षेत्रों में इसकी कभी भी उपस्थिति नहीं थी।


‘तेंदुओं का राजस्थान के थार रेगिस्तान की ओर सीमा विस्तार एवं गमन’ शीर्षक से प्रकाशित इस शोधपत्र में बताया गया है कि तेंदुआ (पेंथेरा पारड्स) एक विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली बड़ी बिल्ली की प्रजाति है जो संरक्षित एवं मानव प्रधान दोनों क्षेत्रों पर निवास करती है। भारत में यह मुख्यतः पर्णपाती, सदाबहार, झाड़ीदार जंगल और मानव निवास के किनारों पर पाई जाती है। परन्तु इसकी उपस्थिति अभी तक राजस्थान (थार मरूस्थल) और गुजरात (कच्छ क्षेत्र) के शुष्क क्षेत्रों एवं उच्च हिमालय क्षेत्रों में अनुपस्थित थी। 



थार के इन पांच जिलों में दिखी उपस्थिति-


शोधकर्त्ता डॉ. विजय कोली ने बताया कि इस शोध में इस प्रजाति की उपस्थिति राजस्थान के उन पांच जिलों से दर्ज की गई जो कि थार मरूस्थल के विस्तार सीमा में पाए जाते है। उन्होंने बताया कि जोधपुर, जैसलमेर, चुरू, बाड़मेर और बीकानेर जिलों में यह प्रजाति अलग-अलग प्रकार के आवास क्षेत्रों में पाई गई। जैसे यूनिवर्सिटी कैम्पस, फैक्ट्री कैम्पस, खेतों के पास, कुंओं में घिरा हुआ, झाड़ी विस्तार क्षेत्र और मनुष्य निवास क्षेत्रों के समीप। उन्होंने बताया कि यह सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य है कि सारे पहचाने गये पेंथर नर थे।


55 से लेकर 413 किमी दूरी तय कीे-


डॉ. कोली ने बताया कि उन्होंने शोध के लिए पांच जिलों में पिछले दस सालों की उन 14 घटनाओं को आधार बनाया है जिसमें से इन पेंथर्स की उपस्थिति अपनी ज्ञात सीमा क्षेत्र से 55.4 किलोमीटर से लेकर 413.4 किलोमीटर तक दर्ज की गई जो कि थार मरूस्थल के विस्तार क्षेत्र में है। इनमें से अधिकतर मामलों में इन नर तेंदुओं को वन विभाग द्वारा पकड़कर पुनः अपनी निर्धारित सीमा क्षेत्र में छोड़ा गया।  


शोधकर्त्ताओं के अनुसार ये कारण संभावित हैं-


पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा का कहना है कि सामान्यतः पेंथर अपनी टेरेटरी को बनाए रखते है। उस टेरेटरी में वह दूसरेे पेंथर को प्रवेश नहीं करने देते। अतः निश्चित सीमा क्षेत्र में पेंथर की संख्या बढ़ने या साथ-साथ नर पेंथर की संख्या बढ़ने से एक निश्चित सीमा क्षेत्र में सभी नर पेंथर का रहना मुश्किल है। शक्तिशाली व प्रबल नर तो अपनी सीमा स्थापित लेते है परन्तु दुर्बल या हारे हुए नर पेंथर को वहां से विस्थापित होकर दूसरी जगह जाना पड़ता है। ऐसे में जब किसी क्षेत्र विशेष में पेंथर्स की संख्या बढ़ जाती है तो नए नर पेंथर को अपनी स्वतंत्र टेरेटरी की तलाश में अन्य इलाकों की ओर रूख करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामले रणथंभौर में भी देखे गए हैं जहां टाईगर ने अपनी संख्या बढ़ने पर अन्य क्षेत्रों की ओर रूख किया।  


डॉ. शर्मा के अनुसार दूसरा कारण इन्दिरा गांधी नहर की उपस्थिति के कारण थार मरूस्थल में सिंचाई की सुविधाएं खेती और पौधारोपण क्रियाओं में वृद्धि हुई है। इन सभी क्रियाओं से थार मरूस्थल में वनस्पति आवरण की मात्रा बढ़ गई है। साथ ही नहर की उपस्थिति की वजह से पानी की उपलब्धता भी पूरे साल पाई जाती है। यह सारी स्थितियां पेंथर के निवास के लिए एक अनुकूल वातावरण मुहैया कराती है।


शर्मा के अनुसार तीसरा कारण है कि बढ़ते वनस्पतिक आवरण एवं पानी की उपलब्धता के कारण थार मरूस्थल में पालतू एवं वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इनकी पूरे साल अच्छी संख्या में उपस्थिति के कारण पेंथर सालभर शिकार मिल जाता है। यह स्थिति भविष्य में इस प्रजाति को यहां स्थापित करने में भी मदद करेगी।


थार में भी स्थाई बसेरा संभव- 


शोधकर्त्ता जोधपुर के माचिया बायोलोजिक पार्क के चिकित्साधिकारी डॉ. श्रवण सिंह राठौड़ का कहना है कि वर्तमान शोध में यह पाया गया कि वर्तमान में अभी तक केवल नर तेंदुए ही थार मरूस्थल में प्रवेश कर  रहे है। अतः अगर भविष्य में मादा तेंदुए भी प्रवेश करे तो थार मरूस्थल में यह प्रजाति अपनी उपस्थितियां सीमा क्षेत्र स्थाई रूप से स्थापित कर सकती है। इसके अलावा एक संभावना यह भी है कि भविष्य में इन क्षेत्रों में मानव-तेंदुओं के संघर्ष के मामलों में वृद्धि हो सकती है।

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