मानसून सत्र में पेश किया जाए पत्रकार सुरक्षा कानून
जार राजस्थान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिया ज्ञापन...
जयपुर। राजस्थान में पत्रकार सुरक्षा कानून को राजस्थान विधानसभा के मानसून सत्र में पारित करने की मांग पत्रकारों ने उठाई है। यह अधिनियम मानसून सत्र में पेश करने के लिए जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञापन दिया है। जार के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा व प्रदेश महासचिव संजय सैनी ने मुख्यमंत्री को दिए ज्ञापन में बताया कि
राजस्थान में कलम के सिपाहियों पर आए दिन जानलेवा हमले हो रहे हैं। जयपुर के मीडियाकर्मी अभिषेक सोनी की ऐसे ही एक जानलेवा हमले में मौत हो गई थी। राजस्थान पत्रिका के वरिष्ठ फोटोजर्नलिस्ट्स गिरधारी पालीवाल, पत्रिका के ही ग्रामीण संवाददाता हेमपाल गुर्जर, दैनिक भास्कर के संवाददाता दिलीप चौधरी, सहारा चैनल के संवाददाता सुरेन्द्र सोनी, झालावाड की महिला पत्रकार गीता मीना आदि कई पत्रकारों पर शराब, खान, बजरी माफिया जानलेवा हमले कर चुके हैं। वहीं पत्रकारों को डराने धमकाने के लिए प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी भी झूठे मामले दर्ज करवाने से बाज नहीं आ रहे हैं। टोंक में भ्रष्टाचार की खबरें प्रसारित करने पर जी-राजस्थान के ब्यूरो चीफ पुरुषोत्तम जोशी के खिलाफ एसटी-एससी का झूठा मुकदमा दर्ज करवाकर प्रताडि़त करने का प्रयास किया। वहां के एक स्थानीय पत्रकार मोहम्मद नासिर खान को पुलिस ने गैर कानूनी तरीके से शांति भंग में गिरफ्तार करके प्रताडित किया। आज तक राजस्थान के हैड शरद कुमार के खिलाफ जयपुर के विधायकपुरी थाने में बिना साक्ष्य के ही झूठा मुकदमा दर्ज करके परेशान किया। जैसलमेर में भौम सिंह राजपुरोहित, जयपुर के पत्रकार सन्नी आत्रेय समेत राज्य के कई पत्रकारों को माफियाओं के साथ पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों से भी जान से मारने की धमकियां दी और हमले किए गए। ये सभी घटनाएं एक साल के भीतर घटी है। पूर्व में भी ऐसी बहुत सी घटनाएं हो चुकी है।
पत्रकारों के साथ इस तरह की जानलेवा घटनाएं तभी रुक सकती है जब प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को भयमुक्त करने के लिए यह कानून जरूरी है। महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हो चुका है। राज्य में पत्रकारों व मीडियाकर्मियों पर बढ़ते हमले को देखते हुए यहां भी इसी मानसून सत्र में इसे लागू किया जाए। जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) के मांग पत्र पर विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस घोषणा पत्र कमेटी के चेयरमैन हरीश चौधरी व सदस्य एडवोकेट विभूति भूषण शर्मा ने पत्रकार सुरक्षा कानून समेत पत्रकार हितों से जुड़ी पत्रकार आवास योजना, वरिष्ठ पत्रकार पेंशन योजना फिर से लागू करने, डिजिटल मीडिया को मान्यता प्रदान करने समेत अन्य मांगों को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। प्रथम केबिनेट मीटिंग में पत्रकार सुरक्षा कानून समेत अन्य मांगों को मंजूरी देते हुए शीघ्र लागू करने का वादा किया था। वकीलों की सुरक्षा के लिए सरकार मानसून सत्र में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट ला रही है, वैसे ही पत्रकारों की सुरक्षा वाला कानून भी इसी सत्र में पेश किया जाए। उक्त कानून लागू होने से पत्रकारों को संगठित माफियाओं से सुरक्षा मिल सकेगी और पत्रकार व उनके परिजन खुद को सुरक्षित महसूस कर सकेंगे।
पत्रकार सुरक्षा कानून में ये हो प्रावधान :-
पत्रकारों व मीडियाकर्मियों पर जानलेवा हमले, जान से मारने की धमकियों को गैर जमानती अपराध बनाया जाए और उक्त अपराधों में सात साल से आजीवन कारावास तक के कठोर कारावास से दंडित करने और दो लाख से पांच लाख रुपये के जुर्माने के प्रावधान रखे जाए।
जानलेवा हमले में पत्रकार की मृत्यु होने पर दोषियों पर मृत्युदंड की सजा और दस लाख रुपये के जुर्माने तक के प्रावधान रखे जाए। उक्त जुर्माना दोषियों से वसूलकर मृत पत्रकार के आश्रित परिजनों को दिलवाया जाए। साथ ही आश्रित पत्नी, बेटे-बेटी को सरकारी नौकरी दिए जाने के प्रावधान रखे जाए।
पत्रकार या मीडियाकर्मी की हत्या के मामले को रेयरेस्ट क्राइम मानते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मामले की जांच करवाई जाए। इस तरह के केस को केस ऑफिसर स्कीम में रखकर दोषियों को जल्द सजा दिलवाई जाए। साथ ही मृतक पत्रकार के आश्रित परिजनों को राज्य सरकार द्वारा दस लाख रुपये की आर्थिक सहायता, बच्चों को सरकारी या निजी शिक्षण केन्द्र में नि:शुल्क दिलवाने समेत अन्य विशेष पैकेज दिलवाया जाए।
मीडिया कवरेज के दौरान कवरेज से रोकने, अपशब्द कहने, जान से मारने की धमकी देने, हमले करने के कृत्य को राजकार्य में बाधा डालने जैसे गैर जमानती प्रावधान रखे जाए।
हमले में किसी पत्रकार, फोटोजर्नलिस्ट्स, कैमरामैन व अन्य मीडियाकर्मी पर चोट पहुंचने पर ईलाज की समस्त जिम्मेदारी राज्य सरकार वहन करे और उक्त खर्चे की वसूली दोषियों से की जाए।
पत्रकारों व मीडियाकर्मियों पर हमले, हत्या को लेकर दर्ज मामलों का अनुसंधान आरपीएस या आईपीएस के निर्देशन में हो। तय समय में चालान पेश करने और मामले में प्रतिदिन सुनवाई के प्रावधान रखे जाए।
माफिया की धमकी और हमले के बाद पत्रकार व उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
पत्रकारों व मीडियाकर्मियों की ओर से दर्ज मामलों पर त्वरित कार्यवाही हो और जान से मारने की धमकी देने या हमले की सूचना पर संबंधित मीडियाकर्मियों को सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाए।
कवरेज से रोकने के लिए संगठित माफिया या बदमाश पत्रकार या मीडियाकर्मी को फंसाने, डराने के लिए पुलिस को झूठी शिकायत देते हैं तो पहले उस शिकायत की जांच की जाए और जांच में सही पाए जाने पर ही मुकदमा दर्ज किया जाए। शिकायत झूठी पाई जाती है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। झूठी शिकायतकर्ता के अपराध को गैर जमानती रखा जाए। सजा व जुर्माने के प्रावधान कठोर रखे जाए।
कवरेज के दौरान पत्रकारों व मीडियाकर्मियों के दुर्घटनाग्रस्त होने, घायल होने पर सरकारी व निजी चिकित्सालय में सरकारी स्तर पर ईलाज करवाया जाए। साथ ही ईलाज के दौरान वेतन-भत्ते नियमित मिलते रहे, इसके प्रावधान किए जाए।
पत्रकारों की शिकायतों पर राज्य के सभी पुलिस थानों में शीघ्र कार्यवाही अमल में लाई जाए। लापरवाही बरतने वाले अधिकारी व कर्मियों पर त्वरित कार्यवाही के प्रावधान रखे जाए।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए उन्हें हथियार लाइसेंस उपलब्ध करवाए जाए।
पत्रकारों पर हमले की सालाना रिपोर्ट राजस्थान विधानसभा में पेश की जाए।
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