आशीष मिश्र
जयपुर। पिछले 21 जुलाई को धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया। राज्यसभा की कार्यवाही के एक दिन बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया।
हालांकि राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि उनके स्वास्थ्य से जुड़े बयान का इस्तेमाल किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम को छिपाने के रूप में किया गया ।
संविधान और अगला कदम
उपराष्ट्रपति पद के खाली होने पर संविधान के अनुच्छेद 67 और 68(2) में वर्णित प्रक्रिया लागू होती है—नई चुनाव जल्द से जल्द संपन्न करवाना अनिवार्य है और तब तक डिप्टी चेयरमैन हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा की कार्यवाही संभालेंगे ।
चुनाव आयोग ने 23 जुलाई को oficialmente चुनाव प्रक्रिया की तैयारी शुरू की घोषणा की और जल्द चुनाव की तारीख जारी करने की संभावना है।
स्वास्थ्य कारण आधिकारिक तौर पर सामने आए लेकिन विपक्ष और कई राजनीतिक विश्लेषक इसे केंद्रीय सरकार और उपराष्ट्रपति के कार्य-शैली की लड़ाई मान रहे हैं।
प्रमुख मोड़ वह 'Varma प्रस्ताव' रहा जहाँ धनखड़ ने ‘स्वतंत्र भूमिका’ निभाई जिसे सरकार ने अनापेक्षित समझा। उनकी अचानक ताबड़तोड़ प्रतिक्रिया—राष्ट्रपति भवन जाना, तुरंत इस्तीफा देना व पासपैकिंग—नवीन राजनीतिक कूटनीति की गुत्थी खोलती है।
वैधानिक रूप से स्थिति स्पष्ट है—अस्थायी नेतृत्व, चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ लेकिन राजनीतिक रूप से इस घटना ने विपक्ष को मौका दिया है तथा नए उम्मीदवार का चयन उपस्थित शक्ति संघर्ष की प्रतीत होती है।
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