मोदी सरकार में भारत की भूख और कर्ज़ की स्थिति –आंकड़ों की जुबानी विकास की हकीकत"

आशीष मिश्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंचों पर कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं लेकिन देश की आंतरिक सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लेकर कई सवाल भी खड़े हुए हैं। विशेष रूप से ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में भारत की गिरती रैंकिंग और बढ़ते सार्वजनिक कर्ज़ ने विशेषज्ञों को चिंतित किया है।

हंगर इंडेक्स में गिरावट – कुपोषण की चिंता

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में भारत की स्थिति 2014 में 55वें स्थान पर थी जो 2023 तक गिरकर 111वें स्थान पर पहुंच गई। यह उस समय की बात है जब प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को "विश्वगुरु" बनाने की बात की थी।

GHI चार प्रमुख संकेतकों के आधार पर बनता है: 

कुपोषित जनसंख्या का प्रतिशत

5 साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण (Wasting & Stunting), 

बाल मृत्यु दर और

भोजन की कमी

विशेषज्ञों की राय:

कई स्वतंत्र रिपोर्ट्स के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद खाद्य असुरक्षा और बेरोज़गारी के कारण निचले तबके की आबादी को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचा। सरकार की ओर से राशन योजनाएं और जनधन खातों जैसी पहलें की गईं, लेकिन ज़मीनी प्रभाव सीमित रहा।

राष्ट्रीय कर्ज़ में भारी इजाफा

2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई उस समय भारत का कुल सार्वजनिक कर्ज़ (Public Debt) लगभग ₹55 लाख करोड़ था। 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर ₹170 लाख करोड़ के पार हो गया है – जो GDP का लगभग 83% है।

क्या कहते हैं आर्थिक विशेषज्ञ ?

IMF और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने भारत के कर्ज़ के स्तर को "सस्टेनेबल" बताया है, लेकिन चेतावनी दी है कि यदि रोजगार और उत्पादन नहीं बढ़ा तो यह कर्ज़ देश की वित्तीय स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है।

सरकार का पक्ष...

सरकार का दावा है कि डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों से दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित किया गया है। गरीबों के लिए PM-Awas, PM-Kisan, और फ्री राशन योजनाएं राहत दे रही हैं।

GHI की रैंकिंग पर सरकार ने सवाल भी उठाए हैं, यह कहते हुए कि उनके डेटा अधूरा और "पूर्वाग्रही" है।

आंकड़े विकास की कहानी कह रहे हैं या चेतावनी?

जहां एक ओर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, वहीं दूसरी ओर हंगर इंडेक्स और बढ़ता कर्ज़ यह सवाल खड़ा करता है कि विकास के लाभ क्या वास्तव में समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक पहुंच पा रहे हैं?

आने वाले वर्षों में भारत को यदि वैश्विक शक्ति बनना है तो उसे न केवल GDP बढ़ानी होगी, बल्कि सामाजिक सूचकांकों में भी सुधार लाना होगा।

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